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"शोख़ नज़र"(रुबाइ)





"वह   शोख़  नज़र  मिलती  ही  नहीं
 और दिल की कली खिलती भी नहीं !
 ये   अपनी   वफ़ा   का   आलम   है
 और  उनकी  जफ़ा  टलती  भी नहीं !!
 अब    शौक़े - नज़ारा   क्या   कहिए
 नज़रों    में    कोई   सूरत   ही   नहीं ;
 है   सर्द   फ़िज़ा   दिल   की  अपनी ,
 जो   आग   लगी   बुझती   भी नहीं !!
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4 Comments

Swati chourasia

13-Jun-2022 12:07 PM

बहुत खूब 👌

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Virendra Pratap Singh

14-Jun-2022 07:01 AM

Thanks for likening and comment Swati.

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Renu

12-Jun-2022 05:35 PM

👍👍

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Virendra Pratap Singh

13-Jun-2022 11:22 AM

धन्यवाद रेनू जी।

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