"शोख़ नज़र"(रुबाइ)
"वह शोख़ नज़र मिलती ही नहीं
और दिल की कली खिलती भी नहीं !
ये अपनी वफ़ा का आलम है
और उनकी जफ़ा टलती भी नहीं !!
अब शौक़े - नज़ारा क्या कहिए
नज़रों में कोई सूरत ही नहीं ;
है सर्द फ़िज़ा दिल की अपनी ,
जो आग लगी बुझती भी नहीं !!
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Swati chourasia
13-Jun-2022 12:07 PM
बहुत खूब 👌
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Virendra Pratap Singh
14-Jun-2022 07:01 AM
Thanks for likening and comment Swati.
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Renu
12-Jun-2022 05:35 PM
👍👍
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Virendra Pratap Singh
13-Jun-2022 11:22 AM
धन्यवाद रेनू जी।
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